भवानी प्रसाद मिश्रा का जीवन परिचय | Bhawani Prasad Mishra Ka Jeevan Parichay

Written By The Biography Point

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भवानी प्रसाद मिश्रा जी का स्मरणीय संकेत

पूरा नामभवानी प्रसाद मिश्रा
जन्म तिथि29 मार्च 1913
जन्म स्थानग्राम+पोस्ट टिगरिया,
जिला होशंगाबाद,
मध्य प्रदेश (भारत)
आयु71 वर्ष
पिता का नामपंडित सीताराम मिश्रा
माता का नामश्रीमती गोमती देवी
बेटे का नामअनुपम मिश्रा
शिक्षाबी० ए० ( स्नातक)
कॉलेज/विश्वविद्यालयरॉबर्टसन कॉलेज (जबलपुर)
शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर)
पेशालेखक
कवि
संपादन
स्वतंत्रता सेनानी
प्रमुख रचनाएँकाव्य-संग्रह
सतपुड़ा के जंगल 
सन्नाटा 
बुनी हुई रस्सी
खुशबू के शिलालेख 
चकित है दुख 
निबंध
कुछ नीति कुछ राजनीति
संस्मरण

जिन्होंने मुझे रचा
बाल साहित्य

तुकों के खेल
संपादन

संपूर्ण गांधी वाङमय
कल्पना (साप्ताहिक पत्रिका)
विचार (साप्ताहिक पत्रिका)
महात्मा गांधी की जय 
समर्पण और साधना 
गगनांचल 
भाषाहिंदी
अत्यंत प्रवाहपूर्ण
ओजस्वी और सरल
शैलीसाधारण जीवन
सहज शैली
पुरस्कारपद्मश्री
शिखर सम्मान
साहित्य अकादमी पुरस्कार
कालछायावादोत्तर काल
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
मृत्यु तिथिफरवरी 20, 1985
मृत्यु स्थानजिला नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश (भारत)

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मीराबाईसुभद्रा कुमारी चौहानसूरदास
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ओमप्रकाश वाल्मीकिरसखान
सूर्यकान्त त्रिपाठीआनंदीप्रसाद श्रीवास्तवजयप्रकाश भारती
मैथिलीशरण गुप्तमहावीर प्रसाद द्विवेदीगोस्वामी तुलसीदास
अमरकांतडॉ० संपूर्णानन्दजयशंकर प्रसाद
संत नाभा दासप्रेमघनमोहन राकेश
महाकवि भूषण जीमाखनलाल चतुर्वेदीहरिशंकर परसाई

जीवन परिचय – भवानी प्रसाद मिश्रा (Bhawani Prasad Mishra)

भवानी प्रसाद मिश्रा भारतीय साहित्य में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं, जिन्हें उनकी असाधारण कविता, लेखन और दार्शनिक विचारों के लिए जाना जाता है। हिंदी साहित्य पर उनका प्रभाव बेजोड़ है, उनकी विशेषता एक विशिष्ट काव्यात्मक आवाज़ और मानवीय अनुभव की गहरी समझ है। मिश्र की साहित्यिक रचनाएँ हिंदी साहित्यिक विरासत की सुंदरता को दर्शाती हैं, जो सादगी की भावना, आम लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों और भारत के जीवंत सांस्कृतिक परिदृश्य को दर्शाती हैं। उनका जीवन और कार्य मानवीय स्थिति के सार के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो उन्हें साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाता है।

भवानी प्रसाद मिश्रा का निधन 29 मार्च, 1913 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित टिगरिया नामक विचित्र गांव में हुआ था। उनके प्रारंभिक वर्ष ग्रामीण परिवेश में बीते, जहां गांव के जीवन की सादगी और लय ने उन पर अमिट छाप छोड़ी और उनकी साहित्यिक रचनाओं के मूल विषयों को आकार दिया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पास के स्कूलों में प्राप्त की, जहां साहित्य और कविता के प्रति उनकी प्रतिभा चमकने लगी। स्थानीय समुदाय की जीवंत कहानियों और धुनों के माध्यम से उनमें हिंदी भाषा और साहित्य की समृद्ध तान-बानी विकसित हुई।

भवानी प्रसाद मिश्र ने सादगी और विनम्रता का जीवन जिया, जो उनके लेखन में उनके आदर्शों को दर्शाता है। वे अपनी जड़ों से गहराई से जुड़े हुए थे और अपने परिवार और दोस्तों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते थे। अपनी प्रसिद्धि के बावजूद, मिश्र जमीन से जुड़े रहे और आम लोगों के रोज़मर्रा के संघर्षों और खुशियों से प्रेरणा लेते रहे।

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भवानी प्रसाद मिश्रा की रचनाएँ

यहाँ छायावादोत्तर काल के प्रतिष्ठित कवि और लेखक भवानी प्रसाद मिश्रा का जीवन परिचय के साथ ही उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:

काव्य-संग्रह 

  • सतपुड़ा के जंगल 
  • सन्नाटा 
  • बुनी हुई रस्सी
  • खुशबू के शिलालेख 
  • चकित है दुख
  • सम्प्रति
  • मान सरोवर दिन
  • शरीर कविता फ़सलें और फूल
  • गीतफ़रोश
  • त्रिकाल संध्या 
  • व्यक्तिगत 
  • अनाथ तुम आते हो
  • इदं न मम

 निबंध 

  • कुछ नीति कुछ राजनीति 

संस्मरण 

  • जिन्होंने मुझे रचा 

बाल साहित्य 

  • तुकों के खेल 

संपादन

  • गगनांचल
  • संपूर्ण गांधी वाङमय
  • कल्पना (साप्ताहिक पत्रिका)
  • विचार (साप्ताहिक पत्रिका)
  • महात्मा गांधी की जय 
  • समर्पण और साधना

भवानी प्रसाद मिश्रा साहित्यिक परिचय

मिश्र का साहित्यिक सफर भारत में एक ऐसे महत्वपूर्ण समय के दौरान शुरू हुआ, जो स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रवाद के उदय की विशेषता थी। महात्मा गांधी की शिक्षाओं से गहराई से प्रेरित होकर, उन्होंने एक ऐसी शैली अपनाई, जिसने उनके साहित्यिक भावों में सादगी और प्रामाणिकता पर जोर दिया। उनके लेखन में अक्सर गांधीवादी सिद्धांत समाहित होते हैं, जो जीवन के सार, नैतिक अखंडता और अहिंसक प्रतिरोध में पाई जाने वाली ताकत का जश्न मनाते हैं।

अपने पूरे करियर के दौरान, मिश्रा ने पत्रकार, संपादक और प्रसारक सहित विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं। ऑल इंडिया रेडियो के साथ उनके काम ने उन्हें देश भर में व्यापक दर्शकों के साथ अपनी साहित्यिक अंतर्दृष्टि और कविता साझा करने के लिए एक मंच प्रदान किया। मीडिया क्षेत्र में अपनी प्रतिबद्धताओं के बावजूद, कविता के प्रति उनका समर्पण अटूट रहा और उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखीं।

भवानी प्रसाद मिश्रा भाषा-शैली और विषय-वस्तु

भवानी प्रसाद मिश्र अपनी कविता के लिए प्रसिद्ध हैं, जो अपनी स्पष्टता, काव्यात्मक गुणवत्ता और गहन भावनात्मक गहराई के लिए प्रसिद्ध है। अपने कई साथियों के विपरीत जो जटिल भाषा को तरजीह देते थे, मिश्र ने अपने श्रोताओं के साथ सीधा संबंध बनाने को प्राथमिकता दी। उनकी कविताएँ अक्सर संवादात्मक शैली को अपनाती हैं और लोक धुनों से मिलती-जुलती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के लिए सुलभ और सार्थक दोनों हैं।

उनकी कविताओं के विषय अक्सर प्रकृति की सुंदरता, ग्रामीण अस्तित्व का सार, मानवीय भावनाओं का स्पेक्ट्रम और उनके युग के सामाजिक-राजनीतिक मुद्दे शामिल करते हैं। इसके अतिरिक्त, मिश्रा ने अपनी कविताओं का उपयोग अपनी आध्यात्मिक यात्रा और दार्शनिक अंतर्दृष्टि की खोज के लिए एक मंच के रूप में किया। उनकी अनूठी प्रतिभा रोजमर्रा के क्षणों में महत्वपूर्ण सत्य को उजागर करने में थी, जिससे उनका काम उनके पाठकों के साथ शक्तिशाली रूप से प्रतिध्वनित होता था।

भवानी प्रसाद मिश्रा मान्यता और पुरस्कार

भवानी प्रसाद मिश्र साहित्य के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरस्कार अर्जित किए। 1972 में, उन्हें “बुनी हुई रस्सी” नामक उनके उल्लेखनीय संग्रह के लिए प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस सम्मान ने हिंदी साहित्य के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत किया। उनकी साहित्यिक विरासत कायम है, जो अकादमिक और साहित्यिक समुदायों में गूंजती है, और अनगिनत पाठकों और महत्वाकांक्षी लेखकों को प्रेरित करती रहती है।

भवानी प्रसाद मिश्रा परंपरा

भवानी प्रसाद मिश्रा 20 फरवरी, 1985 को इस दुनिया से चले गए, फिर भी साहित्यिक उत्कृष्टता की उनकी उल्लेखनीय विरासत कायम है। उनके लेखन कवियों, लेखकों और पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। कई स्कूल, साहित्यिक समूह और सांस्कृतिक संस्थाएँ अक्सर उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करती हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका प्रभाव जीवंत बना रहे।

मिश्रा का जीवन और साहित्यिक रचनाएँ एक सच्चे साहित्यिक गुरु का सार दर्शाती हैं – एक ऐसा व्यक्ति जिसने न केवल शब्दों को गढ़ा, बल्कि गहरे भावनात्मक संबंध भी बनाए। सादगी, प्रामाणिकता और मानवता के बंधनों पर उनका ध्यान ऐसे युग में भी गूंजता रहता है जो अक्सर इन मूलभूत मूल्यों से अलग-थलग महसूस करता है।

निष्कर्ष

भवानी प्रसाद मिश्रा सिर्फ़ कवि ही नहीं थे, बल्कि वे दार्शनिक, विचारक और मानवीय भावनाओं के इतिहासकार भी थे। उनका जीवन और उनकी रचनाएँ साहित्य की प्रेरणा, परिवर्तन और जुड़ाव की शक्ति का प्रमाण हैं। अपनी कविताओं के ज़रिए मिश्र ने जीवन के सार को उसके असंख्य रंगों में पिरोया और हिंदी साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनकी विरासत सादगी, ईमानदारी और कलात्मक अखंडता की स्थायी शक्ति की याद दिलाती है।

FAQs: भवानी प्रसाद मिश्रा का जीवन परिचय | Bhawani Prasad Mishra Ka Jeevan Parichay

भवानी प्रसाद मिश्र कौन थे?

Q. भवानी प्रसाद मिश्र एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और गांधीवादी विचारक थे। उनकी कविताएं सरल भाषा में गहरे जीवन दर्शन को प्रस्तुत करती हैं।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म कब और कहां हुआ था?

उनका जन्म 29 मार्च 1913 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गांव में हुआ था।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र की प्रमुख कृतियां कौन-कौन सी हैं?

उनकी प्रमुख कृतियां हैं:

  • सत्याग्रह
  • गीत-फरोश
  • त्रिकाल संध्या
  • चक्की पर चढ़ते हुए

Q. भवानी प्रसाद मिश्र की कविता का मुख्य विषय क्या था?

उनकी कविताओं का मुख्य विषय गांधीवादी सिद्धांत, सत्य, अहिंसा, और मानवता था।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र को कौन से पुरस्कार मिले?

उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (1972) उनकी कृति ‘बुनी हुई रस्सी’ के लिए दिया गया।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र का साहित्यिक योगदान क्या है?

उन्होंने हिंदी कविता को सहजता और सादगी से समृद्ध किया। उनकी कविताएं आम जीवन के अनुभवों और आदर्शों को प्रतिबिंबित करती हैं।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र गांधीवादी कैसे थे?

वे महात्मा गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और अपनी कविताओं में गांधीवादी आदर्शों को व्यक्त किया।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र की भाषा शैली कैसी थी?

उनकी भाषा शैली सरल, प्रभावी और संवादात्मक थी। उन्होंने बोलचाल की भाषा में गहरे विचार प्रस्तुत किए।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र का निधन कब हुआ?

उनका निधन 20 फरवरी 1985 को हुआ।

Q. भवानी प्रसाद मिश्र की कविता ‘गीत फरोश’ का महत्व क्या है?

‘गीत फरोश’ उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है, जिसमें उन्होंने कवि और कविता के रिश्ते को सरलता से व्यक्त किया है। यह कविता साहित्यिक जगत में उनकी पहचान का प्रतीक है।

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