जीवनानंद दास जी का स्मरणीय संकेत
| पूरा नाम (Full Name) | जीवनानंद दास (Jibanananda Das) |
| जन्म तिथि (Date of Birth) | 17 फरवरी 1899 |
| जन्म स्थान (Place of Birth) | बारीसाल, पश्चिम बंगाल, भारत (अब बांग्लादेश में) |
| आयु (Age) | 55 वर्ष |
| पिता का नाम ( Father’s Name) | सत्यानंद दास |
| माता का नाम (Mother’s Name) | कुसुम कुमारी देवी |
| पत्नी का नाम (Wife’s Name) | लाबण्यप्रभा दास (1930-1954) |
| भाई का नाम ( Brother’s Name) | 1. ब्रह्मानंद दाशगुप्ता 2. अशोकानंद दास |
| बहन का नाम (Sister’s Name) | सुचरिता दास |
| बच्चे का नाम (Children’s Name) | 1. मंजुश्री दास 2. समरानंद दास |
| पेशा (Profession) | लेखक एवं कवि |
| प्रमुख रचनाएँ (Major Works) | ‘बनलता सेन’, ‘झरा पालोक’, ‘धूसर पाण्दुलिपि’, ‘सातटि तारार तिमिर’, ‘मानव बिहंगम’, ‘माल्यवान’, ‘कल्याणी’, ‘निरूपमयात्रा’ आदि। |
| भाषा (Language) | बंगाल |
| राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
| मृत्यु तिथि (Date of Death) | 22 अक्टूबर 1954 |
| मृत्यु स्थान (Place of Death) | कलकत्ता (भारत) |
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जीवन परिचय – जीवनानंद दास (Jibanananda Das)
जीवनानंद दास का जन्म 17 फरवरी, 1899 को बारिसल शहर में हुआ था, जो अब बांग्लादेश है, लेकिन उस समय यह भारत का हिस्सा था। उनके पिता सत्यानंद दास एक शिक्षक थे और सामाजिक परिवर्तन के लिए काम करते थे, जबकि उनकी माँ कुसुम कुमारी दास एक कवि थीं, जो अपनी प्रसिद्ध कविता “आमादेर देश” (हमारा देश) के लिए जानी जाती थीं। संस्कृति से भरे स्थान पर पले-बढ़े दास को अपने जीवन में ही किताबों और कला से परिचय हो गया, जिसका उनके बाद के लेखन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
जीवनानंद दास ने अपनी स्कूली शिक्षा बारिसल ब्रजमोहन स्कूल से पूरी की, जहाँ उनकी कविता और साहित्य में रुचि पैदा हुई। उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में अध्ययन किया, जहाँ उन्होंने 1919 में अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में, उन्होंने 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की।
जीवनानंद दास का साहित्यिक शुरुआत
जीवनानंद दास ने कॉलेज में रहते हुए कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। उनकी शुरुआती कविताएँ रवींद्रनाथ टैगोर से प्रभावित थीं, जो उस समय बंगाली भाषा के एक प्रमुख लेखक थे। हालाँकि, दास ने जल्द ही अपनी खुद की शैली बना ली, जिसमें गहरी सोच, ज्वलंत छवियाँ और लोगों की भावनाओं और प्रकृति के बीच एक सौम्य संबंध शामिल था।
उनकी पहली प्रकाशित कविता, “बोरोशिफर डाक” (मानसून की पुकार), 1919 में एक पत्रिका में छपी थी। इस कविता में प्रकृति के प्रति उनके प्रेम को दर्शाया गया था और बताया गया था कि वे इसे लोगों की भावनाओं से कैसे जोड़ते हैं। अगले वर्षों में, उन्होंने खूब लिखा और अपनी रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित कीं।
जीवनानंद दास का भाषा और शैली
जीवनानंद दास की कविताएँ बंगाल के खूबसूरत परिदृश्यों से प्रेरित हैं, जिसमें उनकी नदियाँ, खेत और जंगल साफ़-साफ़ दिखाई देते हैं। उनकी कविताएँ अक्सर अकेले होने और जीवन में अर्थ खोजने की भावनाओं को व्यक्त करती हैं। वे अक्सर मृत्यु, प्रेम, अकेलेपन और समय बीतने जैसे विषयों पर लिखते हैं।
जीबनानंद दास की शैली इस प्रकार चिह्नित है:
- आधुनिकतावादी प्रभाव : टीएस इलियट और डब्ल्यूबी येट्स जैसे पश्चिमी आधुनिकतावादी कवियों से प्रेरणा लेते हुए, दास ने संरचना और कल्पना के साथ प्रयोग किया।
- प्रतीकात्मकता : उनकी कविता में प्रायः प्रतीकात्मक तत्वों का प्रयोग होता है, तथा सांसारिकता को आध्यात्मिकता के साथ मिला दिया जाता है।
- प्रकृति चित्रण : बंगाल के परिदृश्य उनके काम का केंद्र हैं, जिन्हें अक्सर मानवीय भावनाओं और अस्तित्ववादी चिंतन के रूपक के रूप में दर्शाया जाता है।
- उदासी भरा स्वर : उनकी कविता में हानि और पुरानी यादों का व्यापक भाव व्याप्त है, जो उनकी आत्मनिरीक्षणात्मक प्रकृति को दर्शाता है।
जीवनानंद दास का उल्लेखनीय कार्य
- रूपोशी बांग्ला (“सुंदर बंगाल”): मरणोपरांत प्रकाशित यह संग्रह उनकी सबसे प्रिय कृतियों में से एक है। यह बंगाल की प्राकृतिक सुंदरता का जश्न मनाता है, साथ ही प्रेम, लालसा और मृत्यु की अनिवार्यता के विषयों पर भी प्रकाश डालता है।
- बनलता सेन : शायद उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता, बनलता सेन एक काव्यात्मक उत्कृष्ट कृति है जो जीवन के संघर्षों से मुक्ति और सांत्वना के प्रतीक के रूप में एक महिला की कालातीत सुंदरता को उजागर करती है।
- श्रेष्ठो कोबिता (“चयनित कविताएँ”): इस संकलन में उनकी कुछ बेहतरीन रचनाएँ सम्मिलित हैं, जो एक कवि के रूप में उनके विकास को दर्शाती हैं।
- मोहोलाया : एक संग्रह जो जीवन, मृत्यु और समय बीतने पर उनके दार्शनिक चिंतन को प्रतिबिंबित करता है।
अपने जीवनकाल में दास की कविता को अक्सर बहुत जटिल और अलग माना जाता था। हालाँकि, बाद में, ज़्यादा लोगों ने उनके लेखन में गहराई और रचनात्मकता की सराहना की, और उनके निधन के बाद वे काफ़ी प्रसिद्ध हो गए।
जीवनानंद दास व्यक्तिगत जीवन
जीवनानंद दास एक शर्मीले और विचारशील व्यक्ति थे जो ज़्यादातर निजी जीवन जीते थे। उन्होंने 1930 में लाबन्या दास से विवाह किया, लेकिन उनका रिश्ता अक्सर मुश्किलों भरा रहा क्योंकि वह अंतर्मुखी थे और उन्हें पैसे की समस्या थी। हालाँकि उन्हें कई व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने अपने लेखन पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखा।
दास को अपनी नौकरी में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वे अलग-अलग कॉलेजों में शिक्षक थे, जैसे कि बारिसल में ब्रजमोहन कॉलेज और कोलकाता में सिटी कॉलेज। हालाँकि, उनके पढ़ाने के अनोखे तरीके और शांत व्यक्तित्व के कारण कभी-कभी उनके सहकर्मियों और छात्रों को परेशानी होती थी।
जीवनानंद दास मृत्यु
जीवनानंद दास के जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें अपने लेखन के लिए पहचान मिली, लेकिन उन्हें कई निजी संघर्षों का सामना करना पड़ा। उन्हें पैसों की समस्या से जूझना पड़ा और उनके शांत व्यक्तित्व के कारण उन्हें अन्य लेखकों से जुड़ने में कठिनाई हुई।
14 अक्टूबर 1954 को कोलकाता में जीवनानंद दास का भयानक एक्सीडेंट हुआ। सड़क पार करने की कोशिश करते समय उन्हें ट्राम ने टक्कर मार दी। कुछ लोगों का मानना है कि यह आत्महत्या का प्रयास हो सकता है, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई है। 22 अक्टूबर 1954 को चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई, और वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए, जिसे लोग कई सालों तक संजोकर रखेंगे।
निष्कर्ष
जीवनानंद दास के जीवन ने दिखाया कि गहराई से सोचना और कला के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करना कितना महत्वपूर्ण है। बंगाल के दृश्यों और गहरी मानवीय भावनाओं पर आधारित उनकी कविताएँ आधुनिक बंगाली साहित्य में महत्वपूर्ण बनी हुई हैं। दास ने जिन कठिनाइयों का सामना किया, उसके बावजूद उनकी विरासत आज भी जीवित है, जिसने कई पाठकों और लेखकों को शब्दों की सुंदरता की सराहना करने के लिए प्रेरित किया है।
Frequently Asked Questions (FAQs) जीवनानंद दास का जीवन परिचय | Jibanananda Das Ka Jeevan Parichay
Q. जीबनानंद दास कौन थे?
जीबनानंद दास एक प्रसिद्ध बांग्ला कवि, उपन्यासकार और निबंधकार थे, जिन्हें आधुनिक बांग्ला कविता के अग्रणी कवियों में से एक माना जाता है।
Q. उनका जन्म कब और कहाँ हुआ था?
जीबनानंद दास का जन्म 17 फरवरी 1899 को बांग्लादेश के बारीसाल में हुआ था।
Q. जीबनानंद दास का प्रमुख कार्य कौन सा है?
उनकी कविता “रूपसि बांग्ला” (Ruposhi Bangla) उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति है, जिसमें बांग्ला के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
Q. उन्होंने अपनी शिक्षा कहाँ से पूरी की?
जीबनानंद दास ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।
Q. उनकी कविताओं की मुख्य विशेषता क्या थी?
उनकी कविताओं में प्रकृति का सौंदर्य, मानवीय भावना और एक गहरी दार्शनिकता देखने को मिलती है।
Q. जीबनानंद दास की मृत्यु कैसे हुई?
22 अक्टूबर 1954 को कलकत्ता में एक ट्राम दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।
Q. उनके अन्य प्रसिद्ध कविता संग्रह कौन-कौन से हैं?
उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं:
- धरती
- बनलता सेन
- महापृथ्वी
Q. क्या जीबनानंद दास ने उपन्यास भी लिखे हैं?
हां, उन्होंने कुछ उपन्यास भी लिखे, जैसे “मालानचा” और “शूतरांग”।
Q. क्या उन्हें कोई सम्मान मिला था?
उन्हें मरणोपरांत 1955 में बांग्ला साहित्य के प्रतिष्ठित रविंद्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
Q. जीबनानंद दास की कविताओं का मुख्य विषय क्या था?
उनकी कविताओं का मुख्य विषय प्रकृति, प्रेम और जीवन की क्षणभंगुरता थी।









